Shadows cross from one constellation to another
Dark, foreboding, stark, encompassing
Leaving traces of opaqueness on my mind
Shaken, I forage for an anchor
With flailing hands and feeble heart
He smiles innocently and shrugs
"Grahon ka sab pher hai, bhai"
I wonder at his menacing words
Probing the rationale behind
Finding none, I kneel deep in prayer
What else can an anguished soul do ?
Broods he, but to give in to the Inevitable
I resent his fatalism and my incompetence
To mould the lines on my palm etched deep brown
Towards a destiny premeditated
And nurtured in silken dreams
"केतु की दशा में अक्सर ऐसा होता है बहन जी "
उसकी आँखों में झाँका तो मासूमीयत बेदाग़ छलकी
"अशरिरी साया है विचरता, सूर्य मंडल को टटोलता
आपकी ज़हन को बहन और आत्मा को भी मसलता
शनि पर आप जल चढ़ाओ, मेरी मानो तो अब कहीं न जाओ
तीन महीने की बात है बस शांत रहो और मन लगाओ "
एक टक सुनती रही मैं ,और सपने जो बुनती रही मैं
उनका क्या हशर होगा , पंडित जी अब कुछ तो बताओ
"भाग्य के आगे बहिन जी, किसीकी न चली न चलेगी
आप केवल दाना डालो, पक्षियों को खाना डालो
सेवा में बड़ी शक्ति है, और इस शक्ति में ही अजब भक्ति है "
सांस रोके हैरान थी , सच कहूँ तो परेशान थी
हाथ मलते कब न जाने, लकीरें वे सब न जाने
धुल से गए मिट से गये , बिछुड़ से गए मुड़ से गए
आज अचानक पता चला ग्रहों का है बोलबाला
वे अपने चालें चलें हैं, और विव्हल हम खड़े हैं
असहनीय आघात है, बिन बादल वज्राघात है
चाहा क्या और क्या हुआ, सोचा तो निकला साया !
हमें नहीं दुःख दु;खों का, कब थी हमें आस सुखों का
पर पुरूषार्थ पे बड़ा यकीं था, जो चरितार्थ हो रहा नहीं था
विधि का विधान खंडित कर दूँ, विधाता को अचंबित कर दूँ
ठेस लगी उस विश्वास को है, अदमित जो कल था हताश वो है
अनदेखी किसी छाया से डरता, सबल इंसान आज बिलखता
राहू शनि केतु और मंगल, चक्रव्यूहों का इस जंगल
से निकालता न दिखता प्राणी असहाय यूँ भटकता
पूर्व जन्मों के कर्मों को कोसे, अब न रहा वह अपने भरोसे
विवश है निढाल है, यह भी तो बन्दे मोह माया जाल है
किसने देखा भूमण्डल में विचर किस ग्रह की क्या चाल है?
पर कुएं के मेंढक क्या जाने विश्व का क्या विस्तार है !!
प्रकोप शनि का, कवल केतु का, फिर राहू का ग्रास है
स्वयं से परास्त मानव, भयभीत जीवन अविराम त्रास है
Dark, foreboding, stark, encompassing
Leaving traces of opaqueness on my mind
Shaken, I forage for an anchor
With flailing hands and feeble heart
He smiles innocently and shrugs
"Grahon ka sab pher hai, bhai"
I wonder at his menacing words
Probing the rationale behind
Finding none, I kneel deep in prayer
What else can an anguished soul do ?
Broods he, but to give in to the Inevitable
I resent his fatalism and my incompetence
To mould the lines on my palm etched deep brown
Towards a destiny premeditated
And nurtured in silken dreams
"केतु की दशा में अक्सर ऐसा होता है बहन जी "
उसकी आँखों में झाँका तो मासूमीयत बेदाग़ छलकी
"अशरिरी साया है विचरता, सूर्य मंडल को टटोलता
आपकी ज़हन को बहन और आत्मा को भी मसलता
शनि पर आप जल चढ़ाओ, मेरी मानो तो अब कहीं न जाओ
तीन महीने की बात है बस शांत रहो और मन लगाओ "
एक टक सुनती रही मैं ,और सपने जो बुनती रही मैं
उनका क्या हशर होगा , पंडित जी अब कुछ तो बताओ
"भाग्य के आगे बहिन जी, किसीकी न चली न चलेगी
आप केवल दाना डालो, पक्षियों को खाना डालो
सेवा में बड़ी शक्ति है, और इस शक्ति में ही अजब भक्ति है "
सांस रोके हैरान थी , सच कहूँ तो परेशान थी
हाथ मलते कब न जाने, लकीरें वे सब न जाने
धुल से गए मिट से गये , बिछुड़ से गए मुड़ से गए
आज अचानक पता चला ग्रहों का है बोलबाला
वे अपने चालें चलें हैं, और विव्हल हम खड़े हैं
असहनीय आघात है, बिन बादल वज्राघात है
चाहा क्या और क्या हुआ, सोचा तो निकला साया !
हमें नहीं दुःख दु;खों का, कब थी हमें आस सुखों का
पर पुरूषार्थ पे बड़ा यकीं था, जो चरितार्थ हो रहा नहीं था
विधि का विधान खंडित कर दूँ, विधाता को अचंबित कर दूँ
ठेस लगी उस विश्वास को है, अदमित जो कल था हताश वो है
अनदेखी किसी छाया से डरता, सबल इंसान आज बिलखता
राहू शनि केतु और मंगल, चक्रव्यूहों का इस जंगल
से निकालता न दिखता प्राणी असहाय यूँ भटकता
पूर्व जन्मों के कर्मों को कोसे, अब न रहा वह अपने भरोसे
विवश है निढाल है, यह भी तो बन्दे मोह माया जाल है
किसने देखा भूमण्डल में विचर किस ग्रह की क्या चाल है?
पर कुएं के मेंढक क्या जाने विश्व का क्या विस्तार है !!
प्रकोप शनि का, कवल केतु का, फिर राहू का ग्रास है
स्वयं से परास्त मानव, भयभीत जीवन अविराम त्रास है
Wow ! That's a double joy for any literature lover. Poetry so touching in English and simply fantastic in Hindi. You have posted in Bangla also (I have got the notification). A feat that can be accomplished by one and only Geetashree Chatterjee.
ReplyDeleteJitendra Mathur
Thank you, thank you Mathur Sahab. Your encouragement means a lot to me
Delete"......my incompetence
ReplyDeleteTo mould the lines on my palm etched deep brown
Towards a destiny premeditated
And nurtured in silken dreams"
I liked these beautiful lines.
Sorry,I do not know Hindi to appreciate the content.in that language
Thanks KP for your kindhearted comment
DeleteThe helplessness of a human being in front of the all powerful 'fate' brought out well. Congrats to the Tri-bhaasha-kaviyitri
ReplyDeleteThanks Vimala for arriving here
DeleteBeautifully written. Often wondered about this topic...
ReplyDeleteYes, Anita. This is a very contentious topic which makes you introspect, doubt, philosophize and ultimately accept.
DeleteIt's sad how we accept certain things without rationalizing ... a very vivid poetry ... love how you write in such versatile manner in all three languages :-)
ReplyDeleteThanks Amrit. It is just that I try to be the Jack of all trades and master of none
DeleteDid you write in Hindi as well? The content is yours? Wow!
ReplyDeleteYes the content is mine
ReplyDeleteBeautiful writing..
ReplyDeleteI wish I understand Hindi to read your lines.
Thanks Meera
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