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Saturday 11 July 2015

आस्मां

आज शाम से बस उदास है आस्मां
बादलों के सतह पर डूबता आस्मां
बूंदों के नश्तर से चुभता आस्मां
धरती के पनाह से ऊबता सा आस्मां
पक्षियों के चहचहाने से मुँह फेरता आस्मां
चाँद तारों से  बहाने बनाता आस्मां
वह कहाँ जो हमें था रिझाता आस्मां ?
सूर्य-किरणों में निखर इठलाता आस्मां
कैसे मनाएं  हम के है रूठता आस्मां 


पत्तों के झरोखों से झांकता आस्मां
आज है बेपरवाह, बेबाक, बेसाख्ता आस्मां
कागज़ों के नाओं का पतवार  सा आस्मां
नुक्कड़ पे जमे पानियों में खुद को निहारता आस्मां
उड़ते आज़ाद पतंगों से भिड़  उलझता आस्मां
धुएं के कालिख में खो पथ ढूंढता आस्मां
सरहदों में बट अपनों को पुकारता आस्मां
नापाक इरादों से शर्मिंदा सुलगता आस्मां
मैं मुट्ठी में बंद कर लूं यह है मेरा आस्मां
तुम पलकों में बसालो जो है तुम्हारा आस्मां
आस्मां  फिर कहे के कहाँ है मेरा आस्मां ?
हम कहें  वाह ! क्या तेरा ? यह सब है हमारा आस्मां





Pic from science,nationalgeographic.com 






4 comments:

  1. Seeing you write so well in 3 languages leaves me a bit surprised Geetashree.
    I read this a couple of times to assimilate it. This is the kind of hindi is what one expects to find in Gulzar's writing.

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    1. Somali, Gulzar Sahab is a big influence on me but I cannot imagine ever to be compared to or referred in one breath with him. Thank you for your effusive comment which means a lot to me and will go a long way to encourage me to write more in this medium

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  2. आस्मां के इतने भावों से
    खुद अनजान है आसमां
    अपनी इस बेखुदी से
    बहुत शर्मिंदा है आसमां..!
    Stupendous! Phenomenally beautiful!!

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    1. Thank you, sir. Humbled by your appreciation

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