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Sunday, 13 December 2015

बसन्त

Pic from Google

क्या राज है ये
दरमियां हमारे
गहराता सा

उधेड़ बुन
सपनों का मगर
उलझाता सा

खामोशियों में
अफसाने हजार
दोहराता सा

बीते रुत वो
गरज बरस का
धुंधलाता सा

छंद सुगंध
गीत मोह मादक
छलकाता सा

बेनाम सही
चाह? खींच? कशिश?
मदमाता सा

मीत गीत ये
रीत से परे, चित
हरषाता सा

10 comments:

  1. गीत-छंद ,मदिर - सुगंध .. ऐसे शब्दों से सज कर वसंत ऋतु साक्षात हो उठी है... :)

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  2. खामोशियो में
    अफसाने हजार
    दोहराता सा

    बीते रुत वो
    गरज बरस का
    धुंधलाता सा

    छंद सुगंध
    गीत मोह मादक
    छलकाता सा

    बहुत बढ़िया

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  3. Absolutely beautiful! Your ability to write equally beautifully in 3 languages amazes me.

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  4. Breathtakingly beautiful concatenated haiku!
    Impossible to select the best..all are brilliant!
    Loved them:)

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    1. Thanks Amitji. With your inspiration and encouragement.

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