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Monday 18 March 2019

वो सांवली सी लड़की


वो सांवली सी लड़की
मेरे पड़ोस की नहीं
पर मैंने उसे देखा है
कई मर्तबा खुद को
निहारते  हुए आईने में
पलकों के पगडंडियों को
काजल से पोत कर
सपनों पे और रंग चढ़ाया है जैसे
होठों पे हंसी टिका कर
अनगिनत सवालों का जवाब माँगा है
गालों पे महीन से झुर्रियों की तरकश से 
पर फिर भी उसने सदियाँ लगा दी
खुद को सजाने संजोने में

और मैं यहाँ वक़्त के नोकीले काँटों
से चुभ कर एक लम्हा ढूंढ़ती फिरती हूँ
अपना चेहरा भीड़ में खोजने के लिए