Saturday, 23 May 2015

वह जो लड़की







तीसरे माले  पे वह जो लड़की 
गुनगुनाती सी बैलकनि में
आ खड़ी  होती है 
और मैं एक टक निहारता हुआ 
दियाँ बीत  जाती है 
और मैं सदियों से हारता हुआ .... 


The girl on the third floor balcony
Humming a tune in the air
In silence deep I stand and stare
As time ticks on relentlessly
I fail to count time
Ensnared.......


Inspired by this song :



Saturday, 7 February 2015

Fate

Shadows cross from one constellation to another
Dark, foreboding, stark, encompassing
Leaving traces of opaqueness on my mind
Shaken, I forage for an anchor
With flailing hands and feeble heart
He smiles innocently and shrugs
"Grahon ka sab pher hai, bhai"
I wonder at his menacing words
Probing the rationale behind
Finding none, I kneel deep in prayer
What else can an anguished soul do ?
Broods he, but to give in to the Inevitable
I resent his fatalism and my incompetence
To mould the lines on my palm etched deep brown
Towards a destiny premeditated
And nurtured in silken dreams






"केतु की दशा में अक्सर ऐसा होता है बहन जी "
उसकी आँखों में झाँका तो मासूमीयत बेदाग़  छलकी
"अशरिरी साया है विचरता, सूर्य मंडल को टटोलता
आपकी ज़हन को बहन और आत्मा को भी मसलता
शनि पर आप जल चढ़ाओ, मेरी मानो तो अब कहीं न जाओ
तीन महीने की बात है बस शांत रहो और मन लगाओ "


एक टक सुनती रही मैं ,और सपने जो बुनती रही मैं
उनका क्या हशर होगा , पंडित जी अब कुछ तो बताओ
"भाग्य के आगे बहिन जी, किसीकी न चली न चलेगी
आप केवल दाना  डालो, पक्षियों को खाना डालो
सेवा में बड़ी शक्ति है, और इस शक्ति में ही अजब भक्ति है "
सांस रोके हैरान थी , सच कहूँ तो परेशान थी 
हाथ मलते  कब न जाने, लकीरें वे सब न जाने
धुल से  गए मिट से गये , बिछुड़ से गए मुड़ से गए
आज अचानक पता चला ग्रहों का है बोलबाला
वे अपने चालें चलें हैं, और विव्हल हम खड़े  हैं
असहनीय आघात है, बिन बादल  वज्राघात है
चाहा क्या और क्या  हुआ,  सोचा तो निकला साया !
हमें नहीं दुःख दु;खों का, कब थी हमें आस सुखों का
पर पुरूषार्थ पे बड़ा यकीं था, जो चरितार्थ हो रहा नहीं था
विधि का विधान खंडित कर दूँ, विधाता को अचंबित कर दूँ
ठेस लगी उस विश्वास को है, अदमित जो कल था हताश वो है
अनदेखी किसी छाया से डरता, सबल इंसान आज बिलखता
राहू शनि केतु और मंगल, चक्रव्यूहों का इस जंगल
से निकालता न दिखता प्राणी असहाय यूँ भटकता
पूर्व जन्मों के कर्मों को कोसे, अब न रहा वह अपने भरोसे
विवश है निढाल है, यह भी तो बन्दे मोह माया जाल है
किसने देखा भूमण्डल में विचर किस ग्रह की क्या चाल है?
पर कुएं  के मेंढक क्या जाने विश्व का क्या विस्तार है !!
प्रकोप शनि का, कवल केतु का, फिर राहू का ग्रास है
स्वयं से परास्त मानव, भयभीत जीवन अविराम  त्रास है






Thursday, 8 January 2015

ज़िन्दगी से हटके

धुंधले से साये हैं इर्द गिर्द भटकते
और कुछ  किताबों के फटे पन्ने
एक कहानी लिखी थी कभी मैंने
जो ज़िन्दगी से मुखातिब थी
पर फिर भी मुसलसल अलग
सियाही  की जगह खून था दिल के मेरे
और रंग आसमानों की सी थी
शायद चुराई हुई
फीके पड़  गए  जैसे ही धोया मैंने
अश्कों से बारहा तंग आकर


अब कोरे से काग़ज़ पर फिर सींचती हूँ
इक नज़्म, जो साज़ो-आवाज़ से जुदा है
सिसकियों सी सुनाई पड़ती है
तन्हाई के शोरोगुल में


यह इक अजीब दास्ताँ है जनाब
कहते हैं पढ़नेवाले
लिखने वाले ने दिल खोल के रख
दिया हो जैंसे सामने सबके
पर फिर भी आईने में अक्स
नज़र नहीं आता
मानो काग़ज़ के पन्नो में
कहीं बस गया है जाकर


इक कहानी लिखी थी मैंने कभी
जो ज़िन्दगी से मुख्तलिफ थी
पर फिर भी न जाने क्यों लगता है
बहुत जानी पहचानी सी किसी मरहूम की
आप बीती हो मालुम 



Tuesday, 16 December 2014

Dusk At Bhangarh







The road winds up the hill
Treacherous, tortuous, tiring
In search of that beacon of light
Enlightening, encompassing, ensnaring
A thick film of fog hangs down on earth
Grey, grim, grimacing
At Nature's generous endowments
Unhappy, unrelenting, unhinged
By its own melancholic solitude
Yet daring, dauntless, demanding
Answers best forgotten and buried in the past
The cloak camouflages continuum
And descends like a pall of doom
Presaged, perpetuates pretentions
Of an untimely end  vulnerable
Fearful of a formidable fiasco of a future
Lest it opposes all designs carefully planned
of life, love, lust and longings
Eternal.....


(Thoughts found cadence at Bhangarh, the cursed civilization in timeless wait for divine blessing)