Tuesday, 10 May 2022

एहसास







खरोंच हल्की 
या ज़खम  गहरा
चोट तो है  न ?

ख़ामोशी से या
मुस्का के सहलाओ
दर्द तो है न ?

जीये नहीं  ..अभी कहाँ
साँसों  में वो  
तड़पन तो है न ?

धुआं है .. लकीरें सारी 
अंगारों में 
ठिठुरन  तो हैं न  ?

ख्वाबों को रौंद चला 
पलकों तले 
चुभन तो है न ?

वक़्त अभी - थोड़ी बाकी 
धड़कनों में 
सुलगन तो है न ?



खरोंच हल्की 
या ज़खम  गहरा
चोट तो है  न ?

ख़ामोशी से या
मुस्का के सहलाओ
दर्द तो है न ?





3 comments:

  1. बात गहरी
    यूँ कह डाली जैसे
    बात हो बस
    :)

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  2. बहोत ही सुंदर पंक्तियाँ

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