Saturday 7 February 2015

Fate

Shadows cross from one constellation to another
Dark, foreboding, stark, encompassing
Leaving traces of opaqueness on my mind
Shaken, I forage for an anchor
With flailing hands and feeble heart
He smiles innocently and shrugs
"Grahon ka sab pher hai, bhai"
I wonder at his menacing words
Probing the rationale behind
Finding none, I kneel deep in prayer
What else can an anguished soul do ?
Broods he, but to give in to the Inevitable
I resent his fatalism and my incompetence
To mould the lines on my palm etched deep brown
Towards a destiny premeditated
And nurtured in silken dreams






"केतु की दशा में अक्सर ऐसा होता है बहन जी "
उसकी आँखों में झाँका तो मासूमीयत बेदाग़  छलकी
"अशरिरी साया है विचरता, सूर्य मंडल को टटोलता
आपकी ज़हन को बहन और आत्मा को भी मसलता
शनि पर आप जल चढ़ाओ, मेरी मानो तो अब कहीं न जाओ
तीन महीने की बात है बस शांत रहो और मन लगाओ "


एक टक सुनती रही मैं ,और सपने जो बुनती रही मैं
उनका क्या हशर होगा , पंडित जी अब कुछ तो बताओ
"भाग्य के आगे बहिन जी, किसीकी न चली न चलेगी
आप केवल दाना  डालो, पक्षियों को खाना डालो
सेवा में बड़ी शक्ति है, और इस शक्ति में ही अजब भक्ति है "
सांस रोके हैरान थी , सच कहूँ तो परेशान थी 
हाथ मलते  कब न जाने, लकीरें वे सब न जाने
धुल से  गए मिट से गये , बिछुड़ से गए मुड़ से गए
आज अचानक पता चला ग्रहों का है बोलबाला
वे अपने चालें चलें हैं, और विव्हल हम खड़े  हैं
असहनीय आघात है, बिन बादल  वज्राघात है
चाहा क्या और क्या  हुआ,  सोचा तो निकला साया !
हमें नहीं दुःख दु;खों का, कब थी हमें आस सुखों का
पर पुरूषार्थ पे बड़ा यकीं था, जो चरितार्थ हो रहा नहीं था
विधि का विधान खंडित कर दूँ, विधाता को अचंबित कर दूँ
ठेस लगी उस विश्वास को है, अदमित जो कल था हताश वो है
अनदेखी किसी छाया से डरता, सबल इंसान आज बिलखता
राहू शनि केतु और मंगल, चक्रव्यूहों का इस जंगल
से निकालता न दिखता प्राणी असहाय यूँ भटकता
पूर्व जन्मों के कर्मों को कोसे, अब न रहा वह अपने भरोसे
विवश है निढाल है, यह भी तो बन्दे मोह माया जाल है
किसने देखा भूमण्डल में विचर किस ग्रह की क्या चाल है?
पर कुएं  के मेंढक क्या जाने विश्व का क्या विस्तार है !!
प्रकोप शनि का, कवल केतु का, फिर राहू का ग्रास है
स्वयं से परास्त मानव, भयभीत जीवन अविराम  त्रास है