Thursday, 10 February 2011

आपसे कहना है...........


बहुत देर से गूंज रही है सिसकियाँ सन्नाटों की
कुछ तो कहिये के यह खामोशियां पिघल जाए
दिल में चुभ गयी है, होठों से सिली हुई है कहानियां
यह आवाजें चुप में भी सदियाँ लपेट रहीं है
"गाँठ आज खोल ही दीजे", सरसराती हवाएं
कानों तक आ लौट गयी पुकार के नाम आपका
कुछ तो कहिये, बस अब कह भी दीजिये..............
हताश हो अर्जियां मेरी फिर न खाली हाथ जाएँ

12 comments:

  1. woh mere chashme tar mein rehta hai
    ajeeb shaqs hai
    paani ke ghar mein rehta hai.
    Isi pashopesh mein guzari ye tamam umr
    kya ye theek hai ke wabasta ho naya safar
    us aawaaz ki goonj ki goonj tak na lauti idhar
    Hum aaj bhi khare hai wahi chashme tar lekar.

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  2. आवाज़ की गूँज लौटे या न लौटे, ये खूबसूरत नज़्में फ़िज़ाओं में सदा गूँजती रहेंगी ।

    जितेन्द्र

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  3. a beautiful poem...written in a hope of getting a word from the beloved i suppose...!!!

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  4. ...behad khoobsurat khayaal, Geetashree, aur bahut hi pyara likha hai!! Saghan...Gahan...

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