आज सुबह देखा
कुछ टूटे फूटे गमलों में
मिटटी के धेले पड़े थे
उनमें कोमल पत्तियां
और जंगली फूल उग आयें हैं कई
बिना पानी डाले
बिना खाद छिडके
माली ने कहा "निकाल देता हूँ बीबीजी
काम का नहीं हैं ये कोई
न नाम न ज़ात का पता"
मैंने कहा " रहने दो इन्हें वही
येही तो सबूत है के
वह आस पास ही है
हमारे परम पिता
जो ज़ात न देखे पात
केवल लिखता है कविता
मिटटी के सियाही से
धरती के सीने पर
इन पंक्तियों को यही पड़े
रहने दो दोस्त
किसी अनमने बच्चे की
खेल खेल में उभरी
किलकारियां समझ कर"
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