Wednesday, 23 February 2011

आहट

आज सुबह देखा
कुछ टूटे फूटे गमलों में
मिटटी के धेले पड़े थे
उनमें कोमल पत्तियां
और जंगली फूल उग आयें हैं कई
बिना पानी डाले
बिना खाद छिडके
माली ने कहा "निकाल देता हूँ बीबीजी
काम का नहीं हैं ये कोई
न नाम न ज़ात का पता"
मैंने कहा " रहने दो इन्हें वही
येही तो सबूत है के
वह आस पास ही है
हमारे परम पिता
जो ज़ात न देखे पात
केवल लिखता है कविता
मिटटी के सियाही से
धरती के सीने पर
इन पंक्तियों को यही पड़े
रहने दो दोस्त
किसी अनमने बच्चे की
खेल खेल में उभरी
किलकारियां समझ कर"

No comments:

Post a Comment