जब उनसे पहली बार मिले
तो बस एक ही ख्याल आया
ज़हन में
पता नहीं कहाँ छुपा रखा होगा
उन आंसुओं को
जो रह रह के छलक रही थी
ठहाकों में
एक बूँद गर टपक जाती तो
शायद चैन आ जाता
एक बूँद की कमी थी
जो रह रह के सताती रही
सरेशाम रूह को
उनसे मिले तो बस
यह ख्याल आया
ज़हन में
के दर्द छुपाने से
फनाह नहीं होता
बेपनाह, सिसकती हैं ख्वाबों में
नींद में कसक मसक के
कराहती है
एक आंसू की ही तो बात है
गिर जाने दो
बह जाने से कीमत कम
नहीं होती इनकी
उनसे मिले तो यह
ख्याल कचोटती रही
मन को
उनसे यह बातें कह पाते
तो अच्छा होता
दिल को छू गई गीता जी आप की ये नज़्म । दाद देने को जी नहीं चाहता । बस इसे महसूस करना चाहता हूँ ।
ReplyDeleteजितेन्द्र