Sunday, 13 December 2015

बसन्त

Pic from Google

क्या राज है ये
दरमियां हमारे
गहराता सा

उधेड़ बुन
सपनों का मगर
उलझाता सा

खामोशियों में
अफसाने हजार
दोहराता सा

बीते रुत वो
गरज बरस का
धुंधलाता सा

छंद सुगंध
गीत मोह मादक
छलकाता सा

बेनाम सही
चाह? खींच? कशिश?
मदमाता सा

मीत गीत ये
रीत से परे, चित
हरषाता सा

Thursday, 3 December 2015

Dusk (Haiku)




day's end
my mother's vermilion
on the sky



Foot Note : This Haiku was first  posted in Your Space of Muse India ejournal