Wednesday, 28 October 2015

Let It Be!!









"Let it be....."
I said tossing a lock
In cold air
Stomping a foot
In dust
Pouting like a
Pampered brat
"Let it be......."
I repeated haughtily
As though I never cared
"If dreams break
Let it be
If words dry up
Let it be
If heart loses
The only chance
Let it be
If the world
Turns its back
What do I care
And what do they care
If I lose my way
In dreary desert
Without leaving
My footprints behind
What do they care
Let it be....
Let it be....
Let it be ...."




The mad moon
Looked down
And laughed heartily
Deriding my clumsy
Act.........of not caring
The night air stung


While I swallowed
A lump of ice
Battling a rage


Defeat is not easy
Neither is winning
So...


Let it be....na?

Thursday, 1 October 2015

ग्रहण


यह राजेश गथवाला के द्वारा ली गयी सुपरमून का चित्र है  




मेरे मित्र नरेश जी के क्लासमेट राजेश गथ्वालाजी ने हाल ही में हुए चन्द्र ग्रहण के समय कैलिफोर्निया के नभ पर  दुल्हन जैसी 'सुपर मून' को अपने कैमरे के लेंस में बड़ी खूबसूरती से क़ैद किया था ।

कुछ दिन पूर्व अमावस पर कुछ यूँ लिखा था :

अमावस की 
रात, हुई तश्तरी 
चाँद की गुम


पर राजेश जी की सुपरमून का सौंदर्य और सजीलापन शब्दों में बयान करना मानो असंभव सा लगा । क्या कहें उस चित्रकार का  जो हर पल चमत्कारी रंग हमारे जीवन के आकाश पर बिखेरता है? कभी भरपूर खुशी तो कभी दुखों का ढेर लगा देता है । कभी भावनाओं का जमघट, कभी  आकांक्षाओं की लम्बी उड़ान, कभी  मिलन के गीत तो कभी  विदाई का दर्दीला गुहार। दिल के दरवाज़ों  पे कितने सारे मेहमान दस्तक देते रहते हैं । पर कोई भी ठहरता नहीं, रुकता नहीं । आते हैं … चले जाते हैं । छुपन छुपाई की खेल की भाँती।  और हम वाट  निहारते रह जाते हैं....

इसी तरह रात करता होगा इंतज़ार चाँद की । पर ग्रहण तो ग्रहण है । वह न सुने किसीकी।  तो क्या करे रात अभागन ?


चाँद सिंदूरी 
आड़ में घूँघट की 
रात बिर्हन (?)

या यूँ कहें :

छुप्न  छुपाई
खेले सखी संग वो
चुल्बुल चाँद  
  
या फिर :

माथे पे सजे 
दुल्हन सी रात की 
अंगारी बिंदी


और :

चाँद ! रूह में 
तेरी, लहक बाक़ी
सर्द आग की

बुझने न दे 
दहक धीमी, ओट
 में ये राख की 

साँसों में  चुभे
 चांदनी, जैसे रेणु
सी पराग की

पी से जा मिल,
है शाम  गाती  गीत
प्रीत राग की

तपिश हो या
ऊफन, बात तो है
 तेरे भाग की

ओढ़ ले कफ्न
दफ़्न  कर स्वप्न थे
जो विराग की

सेज है सजी
फूलों से लदी , तेरे
चिर्सुहाग की

चाँद! रूह में 
छुपी, स्पर्श है अभी 
सर्द आग की


इन हाइकुओं का सत्य, सौंदर्य, ओचित्य व प्रासंगिकता दिग्गज पाठक-पाठिकाओं के काव्य-ज्ञान व आलोचना के सुपुर्द  करती हूँ। 

खासकर यह पोस्ट अमितजी को समर्पित है जिन्होंने हिंदी हाइकू, हाईबन, हायगा व हिंदी भाषा के अन्य  कविताओं और शेरो शायरी से मेरा परिचय कराया और  बहुत ही धैर्य व आग्रह  के साथ मुझे हिंदी में लिखने के लिए प्रोत्साहित किया ।  आशा करती हूँ आप का  प्रोत्साहन मुझे आगे भी इसी तरह मिलती रहेगी।