Saturday 12 September 2015

निर्बोध

पता नहीं ये  हर पल की कश्मकश कहाँ ले जायेगी ? ये धूप  छाओं की पेचीदगी, परेशान सा आलम। और उनका मुझपर  रहम-ओ-क़रम । ख़ाक में मिल जाने का दिल करता है। बचपन में एक ग़ज़ल सुनते थे रेडियो पर - ग़ैरफ़िल्मी । तब उन अल्फ़ाज़ों के मतलब समझ नहीं आते  थे । अब जब थोड़ी थोड़ी समझने लगी हूँ तो छटपटाती हूँ। बोल कुछ इस प्रकार थे (अब इतने सालों बाद कोई ग़लती कर रही हूँ या नहीं; पर शब्द जो भी हो भावनाएं वही है जो कहना चाहती हूँ )

एहले खिरज तुम भी क्या जानो इनकी भी मजबूरी हैं 
ईश्क़ में कुछ पागल सा होना शायद बहुत ज़रूरी है  


ये खिरज साहब भी तजुर्बेकार शायर मालूम पढ़ते  हैं। कैसे, दीवानगी बोलो या बेचारगी कहो, दिल की उलझनों  को अपने शेर के मायाजाल में आबद्ध कर  लिया हँसते- हँसते।  जीवन इसी उलझन का नाम हैं शायद - पाना न पाना, पाके खो देना, खो के खोने का दू:ख और दू:ख में सुख ढूंढना और इन्हीं  नामुराद कोशिशों  में दिन गुज़ारना ।  यही  माया है -

सन्यासी भटके
दर-ब-दर
पारस मणी की
तलाश कर
जब लगा हाथ, पर
त्याग दिया
जान पत्थर

हमें  रहती है ता-उम्र  जिसकी आस  जब वह हाथ लग जाता है तब  हमें वो गवारा नहीं होता। हम उससे पीछा  छुड़ाने के मौके खोजते हैं और जब वह हाथ से निकल जाता है तो ज़ार-ज़ार उसीकी याद में आंसू बहाते हैं, बिलखते हैं, तड़पते हैं। यही  विडम्बना ही जीवन की मूल व्यथा-सार है। मनुष्य की  निर्बुद्धिता - अपने आप को ही न समझ पाना और तभी अपने आप में ही उलझे रहना ।   

कट्टी थी कल  
मिलने उसे ही मैं 
आज बेकल 

13 comments:

  1. kya baat kahi hai...haiku bhi bahut khoobsurat hai
    ise aam lafzon mein kaha jaye toh
    jab tak na mile koi tab tak bekarari
    aur khuda na kare mil jaye ..toh bhi magajmaari...haha :D :D

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    1. Bilkul sahii Somali beqaraari aur magajmaari, donon hii jeewan ke behtarren masaalon mein se hain....

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  2. that is indeed a beautifully written prose..lovely! life is a mirage and those who can look though the illusion have little reason to be infatuated with it.

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    1. Thanks Ankita....life is the biggest reality as well as the most beguiling illusion...correct

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  3. Comment as received on mail (due to some error this comment could not be published)

    "अपने आप को ही न समझ पाना और अपने आप में ही उलझे रहना...
    Bahut badhiya likha hai aapne...ghazal ka mukhdaa pyara laga tha lekin aapka haiku parhne ke baad bilkul pheeka pad gayaa...anonymous shayar sahab meri gustakhi maaf karein..!"

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    1. Thank you, Amitji for the effusive appreciation. The Haiku is a very humble endeavour inspired by your monumental collection of Haikus online...

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  4. Wow! It's so beautiful, Geetashree! And, so very true! Loved it!

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  5. आह ! दुखती रग को छू दिया आपने । ठीक ही तो है । खो देने के बाद ही तो कीमत समझते हैं हम किसी की । और फिर भागते हैं उसी को पाने के लिए जिसे छोड़ दिया था । काश कि हम अपने आप को समझ लें, अपने मन को समझ लें, अपनी नादानियों को वक़्त रहते पहचान लें ! जिसको दुःख-ही-दुःख होता, उसको मुसकाना बाकी है, सब कुछ खो देने की हद तक तुझको पाना बाकी है । अपने ग़म का कितना सारा हिस्सा हमारा ही पैदा किया हुआ होता है गीता जी । तब समझ में आती है यह बात जब बहुत देर हो चुकी होती है । निर्बोध ही तो हैं हम । ख़ुद को ही नहीं समझ पाते। उलझ जाते हैं ख़ुद में । और उलझा देते हैं अपनी ज़िन्दगी को ।

    बहुत-बहुत शुक्रिया इस विडम्बना को रेखांकित करने के लिए जो हमारे जीवन की व्यथा का मूल कारण है।

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    1. Janaab! Aap ke kaii sawaalon ka jawab hai yeh post....!

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  6. lovely post.... though I took some time to read it :p

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